aurat

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गुरुवार, 29 जून 2017

कविता 


" प्रियेसी"

सौन्दर्य की अभाव ,
और गुणों का अकाल  .....
तो फिर!
प्रेम का श्रोत क्या था ???
अकस्मात  ही... 
निगल जाते हैं मुझे ,
तुम्हारे वोह शब्द ,
जिन्हें मैं न निगल सका  .....
धरा का ,तड़फना
और 
बादलों का मात्र बरस जाना 
प्रेम नहीं है प्रियेसी....
प्रेम -- अर्चना  है, अराधना  है, साधना  है 
केवल  !
मिलन ही नहीं ,
बिरह  और वेदना  भी है.....
त्याग और समर्पण भी है ......
आत्मा  से आत्मा  तक पहुंचना ,
पूर्ण आकार है प्रेम का .....
न कि किंचित  तृष्णा-तृप्ति ।।

दिनेश सक्सेना 

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