Internet Bina zindagi par meri ek kavita
सरकार ने इंटरनेट पर चौबीस घंटे का जो प्रतिबंध लगाया
तभी अरसे बाद मेरे एक दोस्त का अचानक फोन आया
बोला आज नहीं है करने को फेसबुक और ट्विटर
तुम्हारी रजा हो तो बुला लो मुझे चाय पर ......
मैने भी हामी भरने में एक पल ना गंवाया
चाय क्या उसके साथ ढेर सारा नाश्ता भी बनाया.....
आखिर दोस्त था वो मेरे बचपन का
जो मिल रहा था आज बरसो के बाद
यूँ तो गुड मॉर्निंग, नाइट गुड संदेशो के ज़रिये
रोज ही होती थी फोन पर मुलाकात....
लेकिन आमने सामने वार्तालाप का मौका
आज सालों के बाद था आया
दरवाजे पर हुई दस्तक और
दोस्त के साथ मानो बीता बचपन भी वापस आया....
देखा उसे मैने तो
अनायास ही एक सवाल मन में गहराया
पूछा मैने कि तुम कुछ कमज़ोर लग रहे हो
उसने बताया,
हाँ कुछ समय पहले बुखार था आया
मैने कहा,
लेकिन कल ही तो तुमने अपनी डी पी की थी अपडेट
उसमे तो लग रहे थे एक दम अपटूडेट .....
वो मुस्कुराया और बोला
वहां तो अच्छा ही दिखना पड़ता है
खराब फोटो पर भला लाईक कौन करता है
सुनकर उसकी बात दोनो ने ठहाके लगाये
याद नहीं कि आज हम
कितने सालों बाद खुलकर खिलखिलाये....
नहीं तो छीन चुके हैँ मस्त ठहाको को
वो दांत दिखाते पीले चेहरे ( ईमोजी ),
जो एक ही टैप में हर भाव उकेरे
वही 'ओ .एम .जी 'और 'स्पीचलेस' खा चुके हैँ
ना जाने कितने ही अल्फाज़ गहरे ....
फिर निकले हम गुनगुनी धूप में सैर पर
तो बड़ा अचम्भा हुआ वहां कुछ देख कर
देखा, अरे आज तो गलियों में
बचपन ने भी था हल्ला बोला
कोई झूले पर तो ,
कही छुपन छुपाई का था खेल अलबेला...
लगा कि शुक्र है कि आज इंटरनेट नहीं चला
तो बचपन भी फोन की गिरफत से बाहर तो निकला ...
पार्क में बैठे लोगो के सिर भी
आज नहीं थे फोन पर नतमस्तक
सब मिलकर बैठे , हंसे बोले और खूब हुई गपशप ...
घर लौटते हुएे पडोस वाली भाभी जी कुछ बेचैन सी नज़र आयी
पूछने पर गुस्से से तनतनाई और बोली
ये सरकार को कोई और काम नहीं है क्या
कहा मैने तो आपको भी कैब पर ऐतराज है क्या,
बोली, अरे भाड़ में गया कैब
ये बताओ ये इंटरनेट बंद क्यूँ किया
मैने कहा अरे एक ही दिन की तो बात है
बोली बात भले ही एक ही दिन की हो मगर
क्या मिला मेरे अरमानो पर पानी फेर कर ....
पूछा कि कैसे फिर गया आपके अरमान पर पानी
बोली, कल ही मैने लिया था नया ट्रेक सूट
प्लान था कि आज वो पहनकर
करूंगी मॉर्निंग वॉक को फेसबुक लाईव...
सुबह उठी, तैयार हुई पर कर ना पायी
मैने कहा चलो कल कर लेना अपने अरमान पूरे
बोली, अरे ज़रूरी नहीं कि
कल भी हो आज जैसा फॉग
नोर्मल मौसम में तो
कोई भी कर लेगा जॉग....
मैं मन ही मन मुस्कायी ...
उन्हे फिर ऐसे ही फॉग की तसल्ली दिलायी
और मस्ती भरे कदमो से
घर वापस आयी....
सोच रही थी मैं कि आज कितने दिनो बाद
सामाजिकता फिर खिलखिलाई है
ये चौबीस घंटो में जैसे दशक भर पुरानी सी
रौनक -ए -ज़िन्दगी लौट आयी है ...
'स्टे कनेक्टेड ' के नाम पर हम
अपनो से और अपने आप से
कितना डिसकनेक्ट हो गए
वो सारी दास्तान
ये चौबीस घंटे कह गए
_-
---------प्रतीक्षा ------
सरकार ने इंटरनेट पर चौबीस घंटे का जो प्रतिबंध लगाया
तभी अरसे बाद मेरे एक दोस्त का अचानक फोन आया
बोला आज नहीं है करने को फेसबुक और ट्विटर
तुम्हारी रजा हो तो बुला लो मुझे चाय पर ......
मैने भी हामी भरने में एक पल ना गंवाया
चाय क्या उसके साथ ढेर सारा नाश्ता भी बनाया.....
आखिर दोस्त था वो मेरे बचपन का
जो मिल रहा था आज बरसो के बाद
यूँ तो गुड मॉर्निंग, नाइट गुड संदेशो के ज़रिये
रोज ही होती थी फोन पर मुलाकात....
लेकिन आमने सामने वार्तालाप का मौका
आज सालों के बाद था आया
दरवाजे पर हुई दस्तक और
दोस्त के साथ मानो बीता बचपन भी वापस आया....
देखा उसे मैने तो
अनायास ही एक सवाल मन में गहराया
पूछा मैने कि तुम कुछ कमज़ोर लग रहे हो
उसने बताया,
हाँ कुछ समय पहले बुखार था आया
मैने कहा,
लेकिन कल ही तो तुमने अपनी डी पी की थी अपडेट
उसमे तो लग रहे थे एक दम अपटूडेट .....
वो मुस्कुराया और बोला
वहां तो अच्छा ही दिखना पड़ता है
खराब फोटो पर भला लाईक कौन करता है
सुनकर उसकी बात दोनो ने ठहाके लगाये
याद नहीं कि आज हम
कितने सालों बाद खुलकर खिलखिलाये....
नहीं तो छीन चुके हैँ मस्त ठहाको को
वो दांत दिखाते पीले चेहरे ( ईमोजी ),
जो एक ही टैप में हर भाव उकेरे
वही 'ओ .एम .जी 'और 'स्पीचलेस' खा चुके हैँ
ना जाने कितने ही अल्फाज़ गहरे ....
फिर निकले हम गुनगुनी धूप में सैर पर
तो बड़ा अचम्भा हुआ वहां कुछ देख कर
देखा, अरे आज तो गलियों में
बचपन ने भी था हल्ला बोला
कोई झूले पर तो ,
कही छुपन छुपाई का था खेल अलबेला...
लगा कि शुक्र है कि आज इंटरनेट नहीं चला
तो बचपन भी फोन की गिरफत से बाहर तो निकला ...
पार्क में बैठे लोगो के सिर भी
आज नहीं थे फोन पर नतमस्तक
सब मिलकर बैठे , हंसे बोले और खूब हुई गपशप ...
घर लौटते हुएे पडोस वाली भाभी जी कुछ बेचैन सी नज़र आयी
पूछने पर गुस्से से तनतनाई और बोली
ये सरकार को कोई और काम नहीं है क्या
कहा मैने तो आपको भी कैब पर ऐतराज है क्या,
बोली, अरे भाड़ में गया कैब
ये बताओ ये इंटरनेट बंद क्यूँ किया
मैने कहा अरे एक ही दिन की तो बात है
बोली बात भले ही एक ही दिन की हो मगर
क्या मिला मेरे अरमानो पर पानी फेर कर ....
पूछा कि कैसे फिर गया आपके अरमान पर पानी
बोली, कल ही मैने लिया था नया ट्रेक सूट
प्लान था कि आज वो पहनकर
करूंगी मॉर्निंग वॉक को फेसबुक लाईव...
सुबह उठी, तैयार हुई पर कर ना पायी
मैने कहा चलो कल कर लेना अपने अरमान पूरे
बोली, अरे ज़रूरी नहीं कि
कल भी हो आज जैसा फॉग
नोर्मल मौसम में तो
कोई भी कर लेगा जॉग....
मैं मन ही मन मुस्कायी ...
उन्हे फिर ऐसे ही फॉग की तसल्ली दिलायी
और मस्ती भरे कदमो से
घर वापस आयी....
सोच रही थी मैं कि आज कितने दिनो बाद
सामाजिकता फिर खिलखिलाई है
ये चौबीस घंटो में जैसे दशक भर पुरानी सी
रौनक -ए -ज़िन्दगी लौट आयी है ...
'स्टे कनेक्टेड ' के नाम पर हम
अपनो से और अपने आप से
कितना डिसकनेक्ट हो गए
वो सारी दास्तान
ये चौबीस घंटे कह गए
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---------प्रतीक्षा ------
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