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गुरुवार, 8 मार्च 2018

श्रीदेवी का जाना...


एक बेहद उमदा अदाकारा का इस तरह से चला जाना  दुखद  तो है ही, दुरभाग्यपूर्ण  भी  है |  आज  सबसे  तेज की संस्कृति  में तमाम खबरिया चैनल  तरह तरह के कयास लगा रहे है और सवाल उठा रहे हैं की आखिर उन्हे  ऐसा क्या  तनाव  था |
श्रीदेवी  को भी तनाव हो सकता है,  ये अधिकतार लोगो के लिए हैरानी की बात है | हो भी क्यो  ना , आखिर हम ऐसे समाज में जो  रहते  हैं जहां आज पैसा सुख की गारंटी मान लिया गया है | और खासतौर  पर जब केन्द्र  में एक औरत  हो  तब उसके लिए खुशियों का पैमाना  एक सफल शादीशुदा  ज़िन्दगी  और बच्चो  के इर्द  गिर्द  ही  समझा जाता है |  बस , उसके आगे ना तो उसके सपनो  की गुंजाईश  है और ना ही उसकी खुद की पेहचान की कोई जगह |

दरअसल, यहाँ श्रीदेवी  के बहाने उस दर्द और तकलीफ को समझने की ज़रुरत है जो हमारा समाज सफल माहिलाओं के मामले में सोचता  तक नहीं  है | य़ा ये कहे की समझना नहीं चाहता  | ज़रा सोचिये जिसने अपने परिवार  के लिए अपने करियर को उस समय अलविदा कहा हो जिस वक़्त वो अपने सफलता  के चरम  पर थी और  फिर एक दशक तक उस तरफ पलट कर नहीं देखा , उसका त्याग  कितना बड़ा  होगा | खास  से आम होने का दर्द वो ही समझ सकता ही जिसने उसे जीया  हो  |

फिर वो दिन आता  है जब बच्चे बड़े  हो जाते हैं  और उनकी अपनी लाइफ  होती है | पति  भी घर की ज़िम्मेदारीयो में उतना टाइम नहीं दे पाता  | तब  वो औरत फिर से अपने करियर की तरफ ध्यान देने की सोचती है | लेकिन ये शो  बिजनेस की दुनिया और पेशे  की तरह नहीं है  | जो लोग आपके करियर के शिखर पर आपके आगे पीछे  घूमते हैं , वो ही इतने साल के अंतराल के बाद काम की तलाश  करने वालो  को बदले  बदले से  नज़र आते हैं |

ये हाल हर शो बिजनेस का है चाहे फिल्म  जगत य़ा टीवी की दुनिया हो य़ा फिर मीडिया | ना तो टैलेट के हिसाब से काम और ओहदा  मिल पता है और ना ही मेहनताना  | तो क्या ये वजह कम नहीं है तनाव के लिए? 

वो श्रीदेवी थीं  इसलिये तनाव की बात उभर कर सामने आ गई , लेकिन उन जैसी ना जाने कितनी ऐसी ही सफल माहिला और होंगी ज़िन्होने  परीवार के लिए सब कुछ छोड़ दिया और वापसी  नहीं कर पाती | गुमनामी  की इस  घुटन को समझने  की ज़रुरत है | इस  सोच को बदलने की ज़रुरत  है की परिवार की खातिर अपने करियर की कुर्बानी  देना कोई बडी  बात नहीं  |  उस समाज को भी समझने  की ज़रुरत है कि कि कुछ समय.घर बैठ जाने से प्रतिभा नही मरती.....

प्रतीक्षा

1 टिप्पणी:

  1. हर कुर्बानी बड़ी होती है..एक अरसे बाद जब फिर से खुद को स्थापित करना हो तो खुद को भी अपनी पुरानी उपलब्धियों से अलग हटकर आज की परिस्थितियों के अनुसार मिलने वाली चुनौतियों को धैर्यपूर्वक स्वीकार करना होता है अन्यथा अवसाद को घेरते देर नहीं लगती...we have to prove ourself everyday. None can let Sachin play Internationalcricket today just bcz he has once been all time greatest player. We have to accept realities and play our game as if its the first one.

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