aurat

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रविवार, 29 दिसंबर 2019

खुशियों का छोटा रिचार्ज

चलो खुशियों का छोटा रिचार्ज करें 
भला क्यों सदा 
कुछ बड़ा होने का ही इंतजार करें ...

निकले यूँ ही किसी दिन 
घने कोहरे में सैर पर 
और बचपन की उस 
बेफिक्र सर्द सुबह का 
फिर दीदार करें 
क्यों किसी हिल स्टेशन जाने का ही  इंतजार करें 
चलो खुशियों का ....

ज़रा पलट कर देखो तो 
गली  के उस सूने हो चुके नुक्कड को  
तो फिर मिले आज चार दोस्त 
और उस नुक्कड को 
चाय  की चुस्कियों से 
गुलजार करें 
क्यों किसी बड़े आयोजन का इंतजार करें 
चलो  खुशियों का ....

लगे जब इस बार 
सावन की वो झड़ी 
क्यों ना निकले बस यूँ ही भीगने को
और फिर से कागज की कश्ती की पतवार बने 
क्यों किसी  रेन डांस पार्टी का  इंतजार करें
चलो खुशियों का ....

याद है सड़क किनारे की 
चटपटी सी चाट - पकोडी की वो दुकान
तो क्यों ना आज मिलकर फिर से 
वही चटकारे बेहिसाब भरें 
क्यों किसी महंगे होटल में जाने का विचार करें 
चलो खुशियों का ....

PRATIKSHA

इंटरनेट पर चौबीस घंटे का प्रतिबंध

Internet Bina zindagi par meri ek kavita

सरकार ने इंटरनेट पर चौबीस घंटे का जो प्रतिबंध लगाया 
तभी अरसे बाद  मेरे एक दोस्त का अचानक फोन आया 
बोला आज नहीं है करने को फेसबुक और ट्विटर  
तुम्हारी रजा  हो तो बुला लो मुझे चाय पर ......
मैने भी हामी भरने में एक पल ना गंवाया 
चाय क्या उसके साथ ढेर सारा नाश्ता भी बनाया..... 

आखिर दोस्त था वो मेरे बचपन का 
जो  मिल रहा था आज बरसो के बाद 
यूँ  तो गुड  मॉर्निंग,  नाइट गुड संदेशो के ज़रिये 
रोज ही होती थी फोन पर मुलाकात.... 

लेकिन आमने सामने वार्तालाप का मौका 
आज सालों के बाद था आया 
दरवाजे  पर हुई दस्तक और 
दोस्त के साथ मानो बीता बचपन भी वापस आया.... 

देखा उसे मैने तो 
अनायास ही एक सवाल मन में गहराया 
पूछा  मैने कि तुम कुछ कमज़ोर लग रहे हो 
उसने बताया,
हाँ कुछ समय पहले बुखार था आया 
मैने कहा, 
लेकिन कल ही तो तुमने अपनी डी  पी की थी अपडेट
 उसमे तो लग रहे थे एक दम अपटूडेट .....

वो मुस्कुराया और बोला 
वहां तो अच्छा ही दिखना पड़ता  है
खराब फोटो पर भला  लाईक कौन करता है 
सुनकर उसकी बात दोनो ने ठहाके लगाये 
याद नहीं कि आज हम 
कितने सालों बाद खुलकर खिलखिलाये....

 नहीं तो छीन चुके हैँ मस्त ठहाको को 
वो दांत दिखाते पीले चेहरे ( ईमोजी ), 
जो एक ही टैप में  हर भाव  उकेरे 
वही   'ओ .एम .जी 'और 'स्पीचलेस'  खा चुके हैँ 
ना जाने कितने ही अल्फाज़ गहरे ....

फिर निकले हम गुनगुनी धूप में सैर पर 
तो बड़ा अचम्भा हुआ वहां कुछ देख कर 
देखा, अरे आज तो गलियों में 
बचपन ने भी था हल्ला बोला
 कोई  झूले पर तो ,
कही छुपन छुपाई का था खेल अलबेला... 

लगा कि शुक्र है कि आज  इंटरनेट नहीं चला 
तो बचपन भी फोन की  गिरफत से बाहर तो निकला ...
पार्क  में बैठे लोगो  के सिर  भी 
आज नहीं थे फोन पर नतमस्तक
सब मिलकर बैठे , हंसे बोले और खूब हुई गपशप ...

घर लौटते हुएे पडोस वाली भाभी जी कुछ बेचैन सी नज़र आयी 
पूछने पर गुस्से से तनतनाई और बोली 
ये सरकार को कोई और काम नहीं है क्या 
कहा मैने तो आपको भी कैब पर ऐतराज है क्या, 
बोली, अरे भाड़ में गया  कैब  
ये बताओ ये  इंटरनेट बंद क्यूँ किया 
मैने  कहा अरे  एक ही दिन की तो बात है 
बोली बात  भले  ही  एक ही दिन की हो मगर 
क्या मिला मेरे अरमानो पर पानी फेर कर ....

पूछा कि कैसे फिर गया आपके अरमान पर पानी 
बोली, कल ही मैने लिया था नया ट्रेक सूट
प्लान था कि आज वो पहनकर 
करूंगी मॉर्निंग वॉक को फेसबुक लाईव... 
सुबह उठी, तैयार हुई पर  कर ना पायी

मैने कहा चलो कल कर लेना अपने अरमान पूरे 
बोली,  अरे ज़रूरी नहीं कि 
कल भी हो  आज जैसा  फॉग 
नोर्मल मौसम में तो 
कोई भी कर लेगा जॉग....

मैं मन ही मन मुस्कायी ...
उन्हे फिर ऐसे ही फॉग की तसल्ली दिलायी  
और मस्ती भरे  कदमो  से 
घर वापस आयी.... 

सोच रही थी मैं कि आज कितने दिनो बाद
सामाजिकता फिर खिलखिलाई है 
ये चौबीस घंटो में जैसे दशक भर  पुरानी सी 
रौनक -ए -ज़िन्दगी लौट आयी है ...

'स्टे कनेक्टेड ' के नाम पर हम 
अपनो से और अपने आप से 
कितना  डिसकनेक्ट हो गए 
वो सारी दास्तान 
ये चौबीस घंटे कह गए 
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---------प्रतीक्षा ------