aurat

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बुधवार, 28 मार्च 2018

बिखरे रिश्तो को करीने से सजाया जाए .....

अरसे से बिखरे रिश्तो  को फिर करीने से सजाया जाए  ,
बात -बेबात जो रूठे हैं, आज उन सभी को मनाया जाए,

रंजिशे, शिकवे और शिकायत से कब किसका भला हुआ है ,
क्यों ना मुस्कुराकर आज इन सबको भूलाया जाए ,

रिश्तो की अदालत  के कटघरे में अपने ही तो खडे  हैं ,
आओ खुद को हारकर  अपनो को जिताया  जाए ,

अच्छा - बुरा , सही - गलत , सबके अपने हैं पैमाने,
छोडो  ये सब, आज दिलों को दिलों से मिलाया  जाए,

ना जाने कौन सा लम्हा ज़िन्दगी मुकम्मल कर दे ,
मरने से पहले एक बार तो  खुलकर ज़िन्दगी  को गले लगाया  जाए ,

इसका - उसका , तेरा - मेरा बेमतलब के किस्से हैं ,
चलो आदमियत छोडकर  इंसानियत को अपनाया  जाए

बिखरे रिश्तो  को करीने  से सजाया  जाए .....

------प्रतीक्षा ------

मंगलवार, 20 मार्च 2018

ऐ जिंदगी...

ऐ ज़िन्दगी  कभी तो गले लगा,
दुलार , संवार , प्यार कर ,

कभी तो सख्त  पिता की सबक सिखाने वाली भूमिका  से निकल ,
माँ सा निश्चल वात्सल्य भर ,

माना कि तू  कड़वी कसेली दवाई सी है ,
पर कभी तो मीठी  सी लज्जत भी दे ,

ऐ  ज़िन्दगी क्यूँ  तेरी पाठशाला  के इमतिहान खत्म  नहीं होते ,
पिछली  परिक्षाओं  के परिणाम भी तो दे दे ,

जब भी इच्छाशक्ति की कलम  से हौसलों  के काग़ज़ पर कुछ लिखती  हूँ ,
तू  पुराना कागज छीन कर नया  प्रश्न पत्र थमा देती है ,

ऐ ज़िन्दगी  कहते हैं की सांसो के मोती  पिरोकर ही जीवन बनता है ,
तो इतनी बेरहम ना बन , थोड़ा  सांस तो लेने दे ,

ऐ ज़िन्दगी ....

----प्रतीक्षा -----

ऐ जिंदगी....

ऐ ज़िन्दगी  कभी तो गले लगा,
दुलार , संवार , प्यार कर ,

कभी तो सख्त  पिता की सबक सिखाने वाली भूमिका  से निकल ,
माँ सा निश्चल वात्सल्य भर ,

माना कि तू  कड़वी कसेली दवाई सी है ,
पर कभी तो मीठी  सी लज्जत भी दे ,

ऐ  ज़िन्दगी क्यूँ  तेरी पाठशाला  के इमतिहान खत्म  नहीं होते ,
पिछली  परिक्षाओं  के परिणाम भी तो दे दे ,

जब भी इच्छाशक्ति की कलम  से हौसलों  के काग़ज़ पर कुछ लिखती  हूँ ,
तू  पुराना कागज छीन कर नया  प्रश्न पत्र थमा देती है ,

ऐ ज़िन्दगी  कहते हैं की सांसो के मोती  पिरोकर ही जीवन बनता है ,
तो इतनी बेरहम ना बन , थोड़ा  सांस तो लेने दे ,

ऐ ज़िन्दगी ....

----प्रतीक्षा -----

गुरुवार, 8 मार्च 2018

इंतजार

शब्द मेरे  बेमायने हैं...जब तक वो तुम्हारे अर्थ ना बने..

अभीव्यक्ति मेरी मूक है ... जब तक वो तुम्हारे एहसास ना बने..

संघर्ष मेरा जाया है..जब तक वो तुम्हारी सफलता ना बने ...

यूँ तो कहते हैं के प्यार को अल्फाजों की दरकार  नहीं...

फिर भी तुम बोलो तो मेरे अरमानो को परवाज मिले ...

मैं कब तक इस उम्मीद को लेकर चलूँ...

कि एक दिन हमारा शब्दआर्थ भी बदलेगा  भावार्थ में...

 कुछ प्यार में, कुछ तकरार में ...

आकर बोलो तुम कि ये अच्छा है..ये खराब...

कभी तो दोगी मुझे अपने पूरे दिन का हिसाब...

 ज़िद, फरमाईश, रूठने -मनाने का पन्ना ...

कभी तो  शामिल होगा हमारे भी रिश्ते की किताब में...

हर संभव जतन कर रही हूँ इसी आस में...

तो अब और परीक्षा ना लो मेरे धैर्य की...

उठो और मायने दो मेरे हर शब्द को...

खोलो अपने बंद मन के दरवाजे..

निकालो उसमे से अपनी भावनाओं के खजाने...

मेरे संघर्ष को बना दो सफलता...

कर दो बारिश मुझ पर...

अपने खट्टे -मीठे एहसासों की...

बहुत हुई अब मूक अभिव्याक्ति...

सहना मेरे बस की बात नहीं...

कुछ तुम बोलो, कुछ मैं बोलूँ...

अपनी बातों की बारात सजे...

                                           प्रतीक्षा

श्रीदेवी का जाना...


एक बेहद उमदा अदाकारा का इस तरह से चला जाना  दुखद  तो है ही, दुरभाग्यपूर्ण  भी  है |  आज  सबसे  तेज की संस्कृति  में तमाम खबरिया चैनल  तरह तरह के कयास लगा रहे है और सवाल उठा रहे हैं की आखिर उन्हे  ऐसा क्या  तनाव  था |
श्रीदेवी  को भी तनाव हो सकता है,  ये अधिकतार लोगो के लिए हैरानी की बात है | हो भी क्यो  ना , आखिर हम ऐसे समाज में जो  रहते  हैं जहां आज पैसा सुख की गारंटी मान लिया गया है | और खासतौर  पर जब केन्द्र  में एक औरत  हो  तब उसके लिए खुशियों का पैमाना  एक सफल शादीशुदा  ज़िन्दगी  और बच्चो  के इर्द  गिर्द  ही  समझा जाता है |  बस , उसके आगे ना तो उसके सपनो  की गुंजाईश  है और ना ही उसकी खुद की पेहचान की कोई जगह |

दरअसल, यहाँ श्रीदेवी  के बहाने उस दर्द और तकलीफ को समझने की ज़रुरत है जो हमारा समाज सफल माहिलाओं के मामले में सोचता  तक नहीं  है | य़ा ये कहे की समझना नहीं चाहता  | ज़रा सोचिये जिसने अपने परिवार  के लिए अपने करियर को उस समय अलविदा कहा हो जिस वक़्त वो अपने सफलता  के चरम  पर थी और  फिर एक दशक तक उस तरफ पलट कर नहीं देखा , उसका त्याग  कितना बड़ा  होगा | खास  से आम होने का दर्द वो ही समझ सकता ही जिसने उसे जीया  हो  |

फिर वो दिन आता  है जब बच्चे बड़े  हो जाते हैं  और उनकी अपनी लाइफ  होती है | पति  भी घर की ज़िम्मेदारीयो में उतना टाइम नहीं दे पाता  | तब  वो औरत फिर से अपने करियर की तरफ ध्यान देने की सोचती है | लेकिन ये शो  बिजनेस की दुनिया और पेशे  की तरह नहीं है  | जो लोग आपके करियर के शिखर पर आपके आगे पीछे  घूमते हैं , वो ही इतने साल के अंतराल के बाद काम की तलाश  करने वालो  को बदले  बदले से  नज़र आते हैं |

ये हाल हर शो बिजनेस का है चाहे फिल्म  जगत य़ा टीवी की दुनिया हो य़ा फिर मीडिया | ना तो टैलेट के हिसाब से काम और ओहदा  मिल पता है और ना ही मेहनताना  | तो क्या ये वजह कम नहीं है तनाव के लिए? 

वो श्रीदेवी थीं  इसलिये तनाव की बात उभर कर सामने आ गई , लेकिन उन जैसी ना जाने कितनी ऐसी ही सफल माहिला और होंगी ज़िन्होने  परीवार के लिए सब कुछ छोड़ दिया और वापसी  नहीं कर पाती | गुमनामी  की इस  घुटन को समझने  की ज़रुरत है | इस  सोच को बदलने की ज़रुरत  है की परिवार की खातिर अपने करियर की कुर्बानी  देना कोई बडी  बात नहीं  |  उस समाज को भी समझने  की ज़रुरत है कि कि कुछ समय.घर बैठ जाने से प्रतिभा नही मरती.....

प्रतीक्षा