एक अंधी दौड थी
भाग रहे थे सभी
शायद ज़िन्दगी से भी
वक़्त नहीं था
अपनो के लिए भी ...
खाना तो था , पर थी लज्ज़त नहीं
घड़ी महंगी थी पर था वक़्त नहीं
रूठ चुकी थी प्रकृति भी हम से
मैना , टिटहरी गायब घर आंगन से ...
इसी बीच आया ' वो '
ज़िसका था नाम ' कोरोना '
सुना है कि है कोई वायरस
मगर, उसी ने तो लौटाए है
जीवन के कई खोये रस...
माना उसने
ताबाही भी खूब है मचाई
कह रहे हैं लोग
उसे बड़ा अताताई है
लेकिन कुछ मायने में तो मुझे
वो लगता है करिशमाई ...
ना होती उसकी आमद तो
क्या अंत था उस अंधी दौड का
क्या कोई परिणाम था
श्रेष्ठता की उस सनकी होड का ...
आज जब थामी है इसने
हमारी ज़िन्दगी तो
देखो ज़रा क्या क्या सामने आया है ...
रूठी प्रकृति का ज़र्रा ज़र्रा
फिर मुस्कुराया है ...
सोचती हूँ कि
ये कोरोना कोई शिक्षक है क्या
जिसने किताबी बातों का
बच्चों को व्यावहारिक ज्ञन कराया है ...
होता है अंबर नीला ,
ये बच्चों को अब जाकर नज़र आया है ...
और चन्दा मामा में बैठी उस बुढिया ने
अब बच्चों को दरस दिखाया है
सच्ची में टिम टिम करते हैं तारे
ये भी तो अब जाना है
रातो में तारों को गिनने
का वो दौर फिर लौट आया है ...
कर रहा है अन्याय भले दुनिया पर
मगर प्रकृति का तो न्यायधीश बन आया है
मनमानी करते इंसा को कैद कर
किस्से काहानी तक थे जो सिमटे
उन गौरेया, कोयल और मैना को
फिर मुंडेर तक लाया है ....
आरोप लगे हैं गंभीर इस पर कि इसने
सामाजिकता को सिमटाया है
सम्बंधो का गला दबाया है
मगर , ज़रा घर आंगन में जाकर देखो
इसने ही फिर से
रिश्तो की बगिया को महकाया है ....
छीना है सुख चैन दुनिया का इसने
मगर है ये कोई गुरु भी शायद
जो कई सबक ले आया है
ज़िन्दगी पर है हक़ सबका ,
इसने ही राजा- रंक, जाति धर्म का
भेद मिटाया है
जो है ज़ितना ताकतवर
उसको उतना ही रूलाया है
चीन , अमरीका विश्व शिरोमणी को भी
घुटनो पर लाया है ...
कह रहे हो लॉकडाउन
जिसे तुम
सच तो ये है
वो कई नई राहे लेकर आया है
खुद से खुद के मिलने के
फिर अपनो संग चलने के
प्रकृति के फिर खिलने के
अनमोल लमहो को फिर सजाया है ....
तो अबसे..
भागो मगर, ठहराव के साथ
तरक्की हो , मगर प्रकृति के साथ
कि बने घर , सराय नहीं
पनपे रिश्ते , सन्नाटे नहीं ...
जानकार कहते हैं
तू है बीमारी कोई , मगर
तू तो बीमार ज़िन्दगी का
इलाज लेकर आया है ...
हम तेरे कडवे सबक
तो अब अपनी इस
सबक की कक्षा को
यही विराम दो
और प्रस्थान करो ....
-----प्रतीक्षा -----
भाग रहे थे सभी
शायद ज़िन्दगी से भी
वक़्त नहीं था
अपनो के लिए भी ...
खाना तो था , पर थी लज्ज़त नहीं
घड़ी महंगी थी पर था वक़्त नहीं
रूठ चुकी थी प्रकृति भी हम से
मैना , टिटहरी गायब घर आंगन से ...
इसी बीच आया ' वो '
ज़िसका था नाम ' कोरोना '
सुना है कि है कोई वायरस
मगर, उसी ने तो लौटाए है
जीवन के कई खोये रस...
माना उसने
ताबाही भी खूब है मचाई
कह रहे हैं लोग
उसे बड़ा अताताई है
लेकिन कुछ मायने में तो मुझे
वो लगता है करिशमाई ...
ना होती उसकी आमद तो
क्या अंत था उस अंधी दौड का
क्या कोई परिणाम था
श्रेष्ठता की उस सनकी होड का ...
आज जब थामी है इसने
हमारी ज़िन्दगी तो
देखो ज़रा क्या क्या सामने आया है ...
रूठी प्रकृति का ज़र्रा ज़र्रा
फिर मुस्कुराया है ...
सोचती हूँ कि
ये कोरोना कोई शिक्षक है क्या
जिसने किताबी बातों का
बच्चों को व्यावहारिक ज्ञन कराया है ...
होता है अंबर नीला ,
ये बच्चों को अब जाकर नज़र आया है ...
और चन्दा मामा में बैठी उस बुढिया ने
अब बच्चों को दरस दिखाया है
सच्ची में टिम टिम करते हैं तारे
ये भी तो अब जाना है
रातो में तारों को गिनने
का वो दौर फिर लौट आया है ...
कर रहा है अन्याय भले दुनिया पर
मगर प्रकृति का तो न्यायधीश बन आया है
मनमानी करते इंसा को कैद कर
किस्से काहानी तक थे जो सिमटे
उन गौरेया, कोयल और मैना को
फिर मुंडेर तक लाया है ....
आरोप लगे हैं गंभीर इस पर कि इसने
सामाजिकता को सिमटाया है
सम्बंधो का गला दबाया है
मगर , ज़रा घर आंगन में जाकर देखो
इसने ही फिर से
रिश्तो की बगिया को महकाया है ....
छीना है सुख चैन दुनिया का इसने
मगर है ये कोई गुरु भी शायद
जो कई सबक ले आया है
ज़िन्दगी पर है हक़ सबका ,
इसने ही राजा- रंक, जाति धर्म का
भेद मिटाया है
जो है ज़ितना ताकतवर
उसको उतना ही रूलाया है
चीन , अमरीका विश्व शिरोमणी को भी
घुटनो पर लाया है ...
कह रहे हो लॉकडाउन
जिसे तुम
सच तो ये है
वो कई नई राहे लेकर आया है
खुद से खुद के मिलने के
फिर अपनो संग चलने के
प्रकृति के फिर खिलने के
अनमोल लमहो को फिर सजाया है ....
तो अबसे..
भागो मगर, ठहराव के साथ
तरक्की हो , मगर प्रकृति के साथ
कि बने घर , सराय नहीं
पनपे रिश्ते , सन्नाटे नहीं ...
जानकार कहते हैं
तू है बीमारी कोई , मगर
तू तो बीमार ज़िन्दगी का
इलाज लेकर आया है ...
इसलिय हे कोरोना !
अब समझ गए हैंहम तेरे कडवे सबक
तो अब अपनी इस
सबक की कक्षा को
यही विराम दो
और प्रस्थान करो ....
-----प्रतीक्षा -----