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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

हे कोरोना !

एक अंधी दौड थी 
भाग रहे थे सभी 
शायद  ज़िन्दगी से भी 
वक़्त नहीं था 
अपनो के लिए भी ...

खाना तो  था , पर थी लज्ज़त  नहीं 
घड़ी महंगी थी पर था वक़्त नहीं  
रूठ चुकी थी प्रकृति भी हम से 
मैना , टिटहरी गायब  घर आंगन से ...

इसी  बीच आया  ' वो '
ज़िसका था नाम  ' कोरोना '
सुना है कि है कोई वायरस
मगर, उसी ने तो लौटाए है 
जीवन के कई खोये रस...

माना उसने 
ताबाही भी खूब है मचाई 
कह रहे हैं लोग 
उसे बड़ा अताताई है 
लेकिन कुछ मायने में तो मुझे 
वो लगता है करिशमाई  ...

ना होती उसकी आमद तो 
क्या अंत था उस अंधी दौड का
क्या कोई परिणाम  था 
श्रेष्ठता की उस सनकी होड का ...

आज जब थामी है इसने 
हमारी ज़िन्दगी तो 
देखो ज़रा क्या क्या  सामने आया  है ...
रूठी प्रकृति का ज़र्रा ज़र्रा 
फिर मुस्कुराया है ...

सोचती हूँ कि 
ये कोरोना कोई शिक्षक  है क्या 
जिसने किताबी बातों का 
बच्चों को व्यावहारिक ज्ञन कराया  है ...

होता है अंबर नीला ,
ये बच्चों को अब जाकर नज़र आया  है ...
और चन्दा मामा में बैठी उस बुढिया ने 
अब बच्चों को दरस दिखाया  है 
सच्ची में टिम टिम करते हैं तारे 
ये भी तो अब जाना है 
रातो में तारों  को गिनने 
का वो दौर फिर लौट आया  है  ...

कर रहा है अन्याय भले दुनिया पर 
मगर प्रकृति का तो न्यायधीश बन आया है 
मनमानी करते  इंसा  को  कैद कर 
किस्से काहानी तक थे जो सिमटे 
उन गौरेया, कोयल और मैना को 
 फिर मुंडेर तक लाया है ....

आरोप लगे हैं गंभीर इस पर कि इसने 
सामाजिकता को सिमटाया है 
सम्बंधो का गला दबाया है 
मगर , ज़रा घर आंगन में जाकर देखो 
इसने ही फिर से 
रिश्तो  की बगिया को महकाया  है ....


छीना है सुख चैन दुनिया का इसने 
मगर है ये कोई गुरु भी शायद  
जो कई सबक ले आया है 
ज़िन्दगी पर है हक़ सबका ,
इसने  ही राजा- रंक, जाति  धर्म  का 
भेद  मिटाया  है 
जो है  ज़ितना ताकतवर 
उसको उतना ही रूलाया है 
चीन , अमरीका विश्व  शिरोमणी को भी 
घुटनो पर लाया है ...

कह  रहे हो  लॉकडाउन 
जिसे तुम 
सच तो ये है 
वो कई नई राहे लेकर आया है 
खुद से खुद के मिलने के 
फिर अपनो संग चलने के 
प्रकृति के फिर खिलने  के 
अनमोल लमहो को फिर सजाया  है ....

तो अबसे..
भागो मगर, ठहराव के साथ 
तरक्की हो , मगर प्रकृति के साथ 
कि बने  घर  , सराय नहीं
पनपे  रिश्ते , सन्नाटे  नहीं ...

जानकार कहते हैं 
तू  है बीमारी कोई , मगर 
तू  तो बीमार ज़िन्दगी का 
इलाज लेकर आया  है ...

इसलिय हे  कोरोना !

अब समझ गए हैं 
हम तेरे कडवे सबक 
तो अब अपनी इस  
सबक की कक्षा को 
यही विराम दो 
और प्रस्थान  करो ....

-----प्रतीक्षा -----

रविवार, 29 दिसंबर 2019

खुशियों का छोटा रिचार्ज

चलो खुशियों का छोटा रिचार्ज करें 
भला क्यों सदा 
कुछ बड़ा होने का ही इंतजार करें ...

निकले यूँ ही किसी दिन 
घने कोहरे में सैर पर 
और बचपन की उस 
बेफिक्र सर्द सुबह का 
फिर दीदार करें 
क्यों किसी हिल स्टेशन जाने का ही  इंतजार करें 
चलो खुशियों का ....

ज़रा पलट कर देखो तो 
गली  के उस सूने हो चुके नुक्कड को  
तो फिर मिले आज चार दोस्त 
और उस नुक्कड को 
चाय  की चुस्कियों से 
गुलजार करें 
क्यों किसी बड़े आयोजन का इंतजार करें 
चलो  खुशियों का ....

लगे जब इस बार 
सावन की वो झड़ी 
क्यों ना निकले बस यूँ ही भीगने को
और फिर से कागज की कश्ती की पतवार बने 
क्यों किसी  रेन डांस पार्टी का  इंतजार करें
चलो खुशियों का ....

याद है सड़क किनारे की 
चटपटी सी चाट - पकोडी की वो दुकान
तो क्यों ना आज मिलकर फिर से 
वही चटकारे बेहिसाब भरें 
क्यों किसी महंगे होटल में जाने का विचार करें 
चलो खुशियों का ....

PRATIKSHA

इंटरनेट पर चौबीस घंटे का प्रतिबंध

Internet Bina zindagi par meri ek kavita

सरकार ने इंटरनेट पर चौबीस घंटे का जो प्रतिबंध लगाया 
तभी अरसे बाद  मेरे एक दोस्त का अचानक फोन आया 
बोला आज नहीं है करने को फेसबुक और ट्विटर  
तुम्हारी रजा  हो तो बुला लो मुझे चाय पर ......
मैने भी हामी भरने में एक पल ना गंवाया 
चाय क्या उसके साथ ढेर सारा नाश्ता भी बनाया..... 

आखिर दोस्त था वो मेरे बचपन का 
जो  मिल रहा था आज बरसो के बाद 
यूँ  तो गुड  मॉर्निंग,  नाइट गुड संदेशो के ज़रिये 
रोज ही होती थी फोन पर मुलाकात.... 

लेकिन आमने सामने वार्तालाप का मौका 
आज सालों के बाद था आया 
दरवाजे  पर हुई दस्तक और 
दोस्त के साथ मानो बीता बचपन भी वापस आया.... 

देखा उसे मैने तो 
अनायास ही एक सवाल मन में गहराया 
पूछा  मैने कि तुम कुछ कमज़ोर लग रहे हो 
उसने बताया,
हाँ कुछ समय पहले बुखार था आया 
मैने कहा, 
लेकिन कल ही तो तुमने अपनी डी  पी की थी अपडेट
 उसमे तो लग रहे थे एक दम अपटूडेट .....

वो मुस्कुराया और बोला 
वहां तो अच्छा ही दिखना पड़ता  है
खराब फोटो पर भला  लाईक कौन करता है 
सुनकर उसकी बात दोनो ने ठहाके लगाये 
याद नहीं कि आज हम 
कितने सालों बाद खुलकर खिलखिलाये....

 नहीं तो छीन चुके हैँ मस्त ठहाको को 
वो दांत दिखाते पीले चेहरे ( ईमोजी ), 
जो एक ही टैप में  हर भाव  उकेरे 
वही   'ओ .एम .जी 'और 'स्पीचलेस'  खा चुके हैँ 
ना जाने कितने ही अल्फाज़ गहरे ....

फिर निकले हम गुनगुनी धूप में सैर पर 
तो बड़ा अचम्भा हुआ वहां कुछ देख कर 
देखा, अरे आज तो गलियों में 
बचपन ने भी था हल्ला बोला
 कोई  झूले पर तो ,
कही छुपन छुपाई का था खेल अलबेला... 

लगा कि शुक्र है कि आज  इंटरनेट नहीं चला 
तो बचपन भी फोन की  गिरफत से बाहर तो निकला ...
पार्क  में बैठे लोगो  के सिर  भी 
आज नहीं थे फोन पर नतमस्तक
सब मिलकर बैठे , हंसे बोले और खूब हुई गपशप ...

घर लौटते हुएे पडोस वाली भाभी जी कुछ बेचैन सी नज़र आयी 
पूछने पर गुस्से से तनतनाई और बोली 
ये सरकार को कोई और काम नहीं है क्या 
कहा मैने तो आपको भी कैब पर ऐतराज है क्या, 
बोली, अरे भाड़ में गया  कैब  
ये बताओ ये  इंटरनेट बंद क्यूँ किया 
मैने  कहा अरे  एक ही दिन की तो बात है 
बोली बात  भले  ही  एक ही दिन की हो मगर 
क्या मिला मेरे अरमानो पर पानी फेर कर ....

पूछा कि कैसे फिर गया आपके अरमान पर पानी 
बोली, कल ही मैने लिया था नया ट्रेक सूट
प्लान था कि आज वो पहनकर 
करूंगी मॉर्निंग वॉक को फेसबुक लाईव... 
सुबह उठी, तैयार हुई पर  कर ना पायी

मैने कहा चलो कल कर लेना अपने अरमान पूरे 
बोली,  अरे ज़रूरी नहीं कि 
कल भी हो  आज जैसा  फॉग 
नोर्मल मौसम में तो 
कोई भी कर लेगा जॉग....

मैं मन ही मन मुस्कायी ...
उन्हे फिर ऐसे ही फॉग की तसल्ली दिलायी  
और मस्ती भरे  कदमो  से 
घर वापस आयी.... 

सोच रही थी मैं कि आज कितने दिनो बाद
सामाजिकता फिर खिलखिलाई है 
ये चौबीस घंटो में जैसे दशक भर  पुरानी सी 
रौनक -ए -ज़िन्दगी लौट आयी है ...

'स्टे कनेक्टेड ' के नाम पर हम 
अपनो से और अपने आप से 
कितना  डिसकनेक्ट हो गए 
वो सारी दास्तान 
ये चौबीस घंटे कह गए 
_-
---------प्रतीक्षा ------

बुधवार, 28 मार्च 2018

बिखरे रिश्तो को करीने से सजाया जाए .....

अरसे से बिखरे रिश्तो  को फिर करीने से सजाया जाए  ,
बात -बेबात जो रूठे हैं, आज उन सभी को मनाया जाए,

रंजिशे, शिकवे और शिकायत से कब किसका भला हुआ है ,
क्यों ना मुस्कुराकर आज इन सबको भूलाया जाए ,

रिश्तो की अदालत  के कटघरे में अपने ही तो खडे  हैं ,
आओ खुद को हारकर  अपनो को जिताया  जाए ,

अच्छा - बुरा , सही - गलत , सबके अपने हैं पैमाने,
छोडो  ये सब, आज दिलों को दिलों से मिलाया  जाए,

ना जाने कौन सा लम्हा ज़िन्दगी मुकम्मल कर दे ,
मरने से पहले एक बार तो  खुलकर ज़िन्दगी  को गले लगाया  जाए ,

इसका - उसका , तेरा - मेरा बेमतलब के किस्से हैं ,
चलो आदमियत छोडकर  इंसानियत को अपनाया  जाए

बिखरे रिश्तो  को करीने  से सजाया  जाए .....

------प्रतीक्षा ------

मंगलवार, 20 मार्च 2018

ऐ जिंदगी...

ऐ ज़िन्दगी  कभी तो गले लगा,
दुलार , संवार , प्यार कर ,

कभी तो सख्त  पिता की सबक सिखाने वाली भूमिका  से निकल ,
माँ सा निश्चल वात्सल्य भर ,

माना कि तू  कड़वी कसेली दवाई सी है ,
पर कभी तो मीठी  सी लज्जत भी दे ,

ऐ  ज़िन्दगी क्यूँ  तेरी पाठशाला  के इमतिहान खत्म  नहीं होते ,
पिछली  परिक्षाओं  के परिणाम भी तो दे दे ,

जब भी इच्छाशक्ति की कलम  से हौसलों  के काग़ज़ पर कुछ लिखती  हूँ ,
तू  पुराना कागज छीन कर नया  प्रश्न पत्र थमा देती है ,

ऐ ज़िन्दगी  कहते हैं की सांसो के मोती  पिरोकर ही जीवन बनता है ,
तो इतनी बेरहम ना बन , थोड़ा  सांस तो लेने दे ,

ऐ ज़िन्दगी ....

----प्रतीक्षा -----

ऐ जिंदगी....

ऐ ज़िन्दगी  कभी तो गले लगा,
दुलार , संवार , प्यार कर ,

कभी तो सख्त  पिता की सबक सिखाने वाली भूमिका  से निकल ,
माँ सा निश्चल वात्सल्य भर ,

माना कि तू  कड़वी कसेली दवाई सी है ,
पर कभी तो मीठी  सी लज्जत भी दे ,

ऐ  ज़िन्दगी क्यूँ  तेरी पाठशाला  के इमतिहान खत्म  नहीं होते ,
पिछली  परिक्षाओं  के परिणाम भी तो दे दे ,

जब भी इच्छाशक्ति की कलम  से हौसलों  के काग़ज़ पर कुछ लिखती  हूँ ,
तू  पुराना कागज छीन कर नया  प्रश्न पत्र थमा देती है ,

ऐ ज़िन्दगी  कहते हैं की सांसो के मोती  पिरोकर ही जीवन बनता है ,
तो इतनी बेरहम ना बन , थोड़ा  सांस तो लेने दे ,

ऐ ज़िन्दगी ....

----प्रतीक्षा -----

गुरुवार, 8 मार्च 2018

इंतजार

शब्द मेरे  बेमायने हैं...जब तक वो तुम्हारे अर्थ ना बने..

अभीव्यक्ति मेरी मूक है ... जब तक वो तुम्हारे एहसास ना बने..

संघर्ष मेरा जाया है..जब तक वो तुम्हारी सफलता ना बने ...

यूँ तो कहते हैं के प्यार को अल्फाजों की दरकार  नहीं...

फिर भी तुम बोलो तो मेरे अरमानो को परवाज मिले ...

मैं कब तक इस उम्मीद को लेकर चलूँ...

कि एक दिन हमारा शब्दआर्थ भी बदलेगा  भावार्थ में...

 कुछ प्यार में, कुछ तकरार में ...

आकर बोलो तुम कि ये अच्छा है..ये खराब...

कभी तो दोगी मुझे अपने पूरे दिन का हिसाब...

 ज़िद, फरमाईश, रूठने -मनाने का पन्ना ...

कभी तो  शामिल होगा हमारे भी रिश्ते की किताब में...

हर संभव जतन कर रही हूँ इसी आस में...

तो अब और परीक्षा ना लो मेरे धैर्य की...

उठो और मायने दो मेरे हर शब्द को...

खोलो अपने बंद मन के दरवाजे..

निकालो उसमे से अपनी भावनाओं के खजाने...

मेरे संघर्ष को बना दो सफलता...

कर दो बारिश मुझ पर...

अपने खट्टे -मीठे एहसासों की...

बहुत हुई अब मूक अभिव्याक्ति...

सहना मेरे बस की बात नहीं...

कुछ तुम बोलो, कुछ मैं बोलूँ...

अपनी बातों की बारात सजे...

                                           प्रतीक्षा