कविता
" प्रियेसी"
सौन्दर्य की अभाव ,और गुणों का अकाल .....
तो फिर!
प्रेम का श्रोत क्या था ???
अकस्मात ही...
निगल जाते हैं मुझे ,
तुम्हारे वोह शब्द ,
जिन्हें मैं न निगल सका .....
धरा का ,तड़फना
और
बादलों का मात्र बरस जाना
प्रेम नहीं है प्रियेसी....
प्रेम -- अर्चना है, अराधना है, साधना है
केवल !
मिलन ही नहीं ,
बिरह और वेदना भी है.....
त्याग और समर्पण भी है ......
आत्मा से आत्मा तक पहुंचना ,
पूर्ण आकार है प्रेम का .....
न कि किंचित तृष्णा-तृप्ति ।।
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