aurat

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रविवार, 29 दिसंबर 2019

खुशियों का छोटा रिचार्ज

चलो खुशियों का छोटा रिचार्ज करें 
भला क्यों सदा 
कुछ बड़ा होने का ही इंतजार करें ...

निकले यूँ ही किसी दिन 
घने कोहरे में सैर पर 
और बचपन की उस 
बेफिक्र सर्द सुबह का 
फिर दीदार करें 
क्यों किसी हिल स्टेशन जाने का ही  इंतजार करें 
चलो खुशियों का ....

ज़रा पलट कर देखो तो 
गली  के उस सूने हो चुके नुक्कड को  
तो फिर मिले आज चार दोस्त 
और उस नुक्कड को 
चाय  की चुस्कियों से 
गुलजार करें 
क्यों किसी बड़े आयोजन का इंतजार करें 
चलो  खुशियों का ....

लगे जब इस बार 
सावन की वो झड़ी 
क्यों ना निकले बस यूँ ही भीगने को
और फिर से कागज की कश्ती की पतवार बने 
क्यों किसी  रेन डांस पार्टी का  इंतजार करें
चलो खुशियों का ....

याद है सड़क किनारे की 
चटपटी सी चाट - पकोडी की वो दुकान
तो क्यों ना आज मिलकर फिर से 
वही चटकारे बेहिसाब भरें 
क्यों किसी महंगे होटल में जाने का विचार करें 
चलो खुशियों का ....

PRATIKSHA

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