aurat

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मंगलवार, 20 मार्च 2018

ऐ जिंदगी...

ऐ ज़िन्दगी  कभी तो गले लगा,
दुलार , संवार , प्यार कर ,

कभी तो सख्त  पिता की सबक सिखाने वाली भूमिका  से निकल ,
माँ सा निश्चल वात्सल्य भर ,

माना कि तू  कड़वी कसेली दवाई सी है ,
पर कभी तो मीठी  सी लज्जत भी दे ,

ऐ  ज़िन्दगी क्यूँ  तेरी पाठशाला  के इमतिहान खत्म  नहीं होते ,
पिछली  परिक्षाओं  के परिणाम भी तो दे दे ,

जब भी इच्छाशक्ति की कलम  से हौसलों  के काग़ज़ पर कुछ लिखती  हूँ ,
तू  पुराना कागज छीन कर नया  प्रश्न पत्र थमा देती है ,

ऐ ज़िन्दगी  कहते हैं की सांसो के मोती  पिरोकर ही जीवन बनता है ,
तो इतनी बेरहम ना बन , थोड़ा  सांस तो लेने दे ,

ऐ ज़िन्दगी ....

----प्रतीक्षा -----

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